Site icon World to News

अमेरिका-ब्रिटेन ने यमन में 16 जगह अटैक किए: बाइडेन बोले- लाल सागर में जहाजों पर हमलों का बदला लिया, हूतियों ने कहा- कीमत चुकानी होगी

us uk forces attack us and uk carry out strikes against iran backed houthis in yemen

US UK forces attack us and uk carry out strikes against iran backed houthis in yemen

अमेरिका और ब्रिटेन की सेना ने गुरुवार को यमन में हूती विद्रोहियों के नियंत्रण वाले इलाकों पर हमले कर दिए हैं। BBC ने अमेरिकी एयरफोर्स के हवाले से बताया है कि हमले 16 लोकेशन्स में 60 टारगेट्स पर किए गए हैं।

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने हमलों के आदेश दिए थे। इसके बाद हूतियों के खिलाफ कार्रवाई हुई है। बाइडेन ने कहा- यमन में हूती विद्रोहियों के खिलाफ ये एक्शन हाल के दिनों में लाल सागर में जहाजों पर हुए हमलों का बदला है। हालांकि, हूतियों ने अमेरिकी अटैक के बाद कहा है कि वो लाल सागर में अपने हमले जारी रखेंगे।

2016 के बाद ये यमन में हूतियों के खिलाफ किया गया अमेरिका का पहला अटैक है। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक यमन में किए जा रहे हमलों में अमेरिका और ब्रिटेन की सेना के साथ ऑस्ट्रेलिया, बहरीन, कनाडा और नीदरलैंड भी हैं। हमले यमन की राजधानी सना, सदा और धमार शहरों के साथ-साथ होदेइदाह प्रांत में हुए हैं।

हूती विद्रोहियों ने हमलों की पुष्टि की है। उन्होंने कहा है कि हमलावरों को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। यमन में ये अटैक विमानों, जहाज़ों और एक पनडुब्बी के जरिए किए गए हैं। इससे 2014 से गृहयुद्ध में फंसा यमन एक बार फिर जंग की चपेट में आ गया है।

us uk forces attack us and uk carry out strikes against iran backed houthis in yemen

बाइडेन बोले- कड़े आदेश देने से पीछे नहीं हटूंगा
दरअसल, इजराइल-हमास जंग के चलते हूतियों ने गाजा का समर्थन करने के लिए लाल सागर में जहाजों पर हमले शुरू कर दिए थे। हूती लाल सागर के शिपिंग मार्गों को निशाना बना रहे हैं।

अमेरिका के राष्ट्रपति ने कहा- हूतियों के हमलों के चलते लाल सागर से गुजरने वाले 2 हजार जहाजों को अपना रास्ता बदलना पड़ा। उन्होंने कहा कि अपने लोगों और शिपिंग रूट को बचाने के लिए मैं और कड़े आदेश देने से पीछे नहीं हटूंगा।

दरअसल, इस समुद्री रास्ते से दुनिया के शिपिंग यातायात की लगभग 15% आवाजाही होती है। हूतियों के हमलों से यूरोप और एशिया के बीच मुख्य मार्ग पर अंतरराष्ट्रीय व्यापार को समस्‍याओं का सामना करना पड़ा है।

सऊदी अरब को चिंता, रूस ने UNSC की इमरजेंसी बैठक बुलाई
सऊदी अरब ने अमेरिका और ब्रिटेन के हमलों से इजराइल-हमास जंग पूरे मिडिल ईस्ट में फैलने का खतरा जताया है। सऊदी के विदेश मंत्रालय ने अपील की है कि कोई भी ऐसी कार्रवाई न की जाए जिससे मामला और आगे बढ़े। वहीं, रूस ने अमेरिका-ब्रिटेन के हमले को गैर कानूनी बताया है। रूस ने संयुक्त राष्ट्र संघ की सिक्योरिटी काउंसिल UNSC में इमेरजेंसी सेशन बुलाने की मांग की है।

हूतियों के हमलों से भारत पर भी असर
23 दिसंबर 2023 की शाम। कॉमर्शियल जहाज ‘MV Chem Pluto’ सऊदी अरब के जुबैल पोर्ट से मंगलोर जा रहा था। अरब सागर में इस जहाज पर ड्रोन हमला हुआ। उस वक्त ये जहाज गुजरात के पोरबंदर से 217 समुद्री मील यानी करीब 390 किमी दूर था।

ये एक केमिकल टैंकर जहाज था, इसके चालक दल में 21 भारतीय और एक वियतनामी नागरिक था। हमले की खबर मिलते के बाद भारतीय तटरक्षक जहाज ICGS विक्रम की सुरक्षा में ये जहाज मुंबई पहुंचा।

इससे ठीक पहले लाल सागर में MV Saibaba जहाज पर भी हमला हुआ था। ये जहाज भारत आ रहा था और इसमें सवार ऑपरेटिव टीम के सभी 25 लोग भारतीय थे। इस पर गैबॉन का झंडा लगा था। दोनों हमलों के बाद इस ट्रेड रूट की सुरक्षा के लिए भारत ने अपने 5 वॉरशिप उतार दिए।

प्रोफेसर अरुण कुमार बताते हैं कि ऐसा पहली बार हो रहा है कि अंतरराष्ट्रीय बिरादरी व्यापार के समुद्री मार्ग की सुरक्षा को लेकर चिंतित है। अमेरिका, चीन, भारत सहित कई देश एक साथ नजर आ रहे हैं।

भारत का 80% व्यापार समुद्री रास्ते से होता है। वहीं 90% ईंधन भी समुद्री मार्ग से ही आता है। अगर समुद्री रास्ते में कोई सीधे हमला करेगा तो भारत के कारोबार पर असर पड़ेगा। देश की सप्लाई चेन बिगड़ जाएगी।

2014 में कैसे शुरु हुई थी यमन की जंग?
साल 2014 में यमन में गृह युद्ध की शुरुआत हुई। इसकी जड़ शिया और सुन्नी विवाद में है। दरअसल यमन की कुल आबादी में 35% की हिस्सेदारी शिया समुदाय की है जबकि 65% सुन्नी समुदाय के लोग रहते हैं। कार्नेजी मिडल ईस्ट सेंटर की रिपोर्ट के मुताबिक दोनों समुदायों में हमेशा से विवाद रहा था जो 2011 में अरब क्रांति की शुरूआत हुई तो गृह युद्ध में बदल गया। 2014 आते-आते शिया विद्रोहियों ने सुन्नी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।

इस सरकार का नेतृत्व राष्ट्रपति अब्दरब्बू मंसूर हादी कर रहे थे। हादी ने अरब क्रांति के बाद लंबे समय से सत्ता पर काबिज पूर्व राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह से फरवरी 2012 में सत्ता छीनी थी। देश बदलाव के दौर से गुजर रहा था और हादी स्थिरता लाने के लिए जूझ रहे थे। उसी समय सेना दो फाड़ हो गई और अलगाववादी हूती दक्षिण में लामबंद हो गए।

अरब देशों में दबदबा बनाने की होड़ में ईरान और सउदी भी इस गृह युद्ध में कूद पड़े। एक तरफ हूती विद्रोहियों को शिया बहुल देश ईरान का समर्थन मिला। तो सरकार को सुन्नी बहुल देश सउदी अरब का। देखते ही देखते हूती के नाम से मशहूर विद्रोहियों ने देश के एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया। 2015 में हालात ये हो गए थे कि विद्रोहियों ने पूरी सरकार को निर्वासन में जाने पर मजबूर कर दिया था।

मैप में देखें अरब देशों में किस समुदाय का दबदबा है

Exit mobile version